व्यापार समझौते पर चर्चा के लिए भारत पहुंच रहे अमेरिका के मुख्य वार्ताकार

vikasparakh
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नयी दिल्ली/बीजिंग. अमेरिका के मुख्य व्यापार वार्ताकार ब्रेंडन लिंच भारत के साथ प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार वार्ता (बीटीए) पर बातचीत के लिए भारत आने वाले हैं. वाणिज्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी. लिंच मंगलवार को व्यापार वार्ता के संबंध में एक-दिवसीय बातचीत करेंगे. उनके सोमवार रात तक भारत पहुंचने की संभावना है. वह अमेरिका के सहायक व्यापार प्रतिनिधि (दक्षिण एवं पश्चिम एशिया) हैं. प्रस्तावित व्यापार समझौते पर दोनों देशों के बीच अबतक पांच दौर की वार्ता हो चुकी है. वार्ता का छठा दौर 25-29 अगस्त के बीच होना था लेकिन अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने के बाद इसे टाल दिया गया था.

बीटीए पर भारत के मुख्य वार्ताकार और वाणिज्य मंत्रालय में विशेष सचिव राजेश अग्रवाल ने कहा, ”हमने पहले भी संकेत दिए हैं कि हमारे बीच बातचीत जारी है. अमेरिका के मुख्य वार्ताकार भारत आ रहे हैं और वह मंगलवार को संभावित परिदृश्य के बारे में चर्चा करेंगे.” अग्रवाल ने कहा, ”हालांकि, यह बीटीए पर छठे दौर की बातचीत नहीं है लेकिन यह निश्चित रूप से व्यापार वार्ता से जुड़ी चर्चा है. यह पता करने की कोशिश होगी कि भारत और अमेरिका के बीच समझौते पर हम किस तरह पहुंच सकते हैं. यह बातचीत छठे दौर की वार्ता से पहले की तैयारी होगी.” इसके साथ ही अग्रवाल ने बताया कि दोनों देश ऑनलाइन माध्यम से साप्ताहिक आधार पर बातचीत करते रहे हैं.

उन्होंने कहा, ”हमारी बातचीत चलती रही है लेकिन हम अधिक प्रगति नहीं कर पा रहे थे. असल में, व्यापक परिदृश्य ही अनुकूल नहीं था. अब हमें एक संभावना नजर आ रही है.” दरअसल, अमेरिकी प्रशासन द्वारा लगाए गए ऊंचे शुल्क से भारत का निर्यात प्रभावित हुआ है. इस तनाव की वजह से प्रस्तावित व्यापार समझौते की प्रगति भी बाधित हुई है. हालांकि, पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से सोशल मीडिया पर व्यक्त सकारात्मक बयानों से माहौल कुछ सुधरा है.

दोनों देशों ने पहले सितंबर-अक्टूबर तक समझौते के पहले चरण को संपन्न करने की मंशा जताई थी. लिंच एशिया के इस क्षेत्र के 15 देशों के साथ अमेरिका की व्यापार नीति तैयार करने और उसके क्रियान्वयन की देखरेख करते हैं. इसमें भारत-अमेरिका व्यापार नीति मंच (टीपीएफ) का प्रबंधन और क्षेत्रीय भागीदारों के साथ व्यापार एवं निवेश रूपरेखा समझौतों (टीआईएफए) के तहत गतिविधियों का समन्वय शामिल है.

चीन ने शुल्क लगाने की अमेरिका की अपील को ”धौंस जमाने” और ”आर्थिक दबाव” बनाने का कृत्य बताया

चीन ने अमेरिका द्वारा जी-7 और नाटो देशों से अपने ऊपर और रूस से तेल खरीद रहे अन्य देशों पर शुल्क लगाने की अपील को एक पक्षीय तरीके से “धौंस जमाने” और “आर्थिक दवाब” बनाने का कृत्य करार दिया और चेतावनी दी कि यदि अमेरिका की इस अपील पर अमल किया गया तो वह जवाबी कदम उठाएगा. चीन की यह प्रतिक्रिया ऐसे समय आई है जब सोमवार को स्पेन में आर्थिक और व्यापारिक मुद्दों पर अमेरिका और चीन के प्रतिनिधिमंडल दूसरी बार बैठक कर रहे हैं.

जी-7 विश्व की सात प्रमुख विकसित और औद्योगिक शक्तियों का एक समूह है जिसमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान शामिल हैं. उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) एक सैन्य गठबंधन है, जिसमें प्रमुख पश्चिमी देशों ने मिलकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समझौता किया है और इसमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली समेत 30 सदस्य देश हैं.
एक नियमित प्रेस वार्ता में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा, ”रूस समेत दुनियाभर के देशों के साथ चीन का सामान्य आर्थिक और ऊर्जा सहयोग पूरी तरह वैध, कानून के अनुरूप है और इसमें कुछ गलत नहीं है.”

प्रवक्ता से इन खबरों के बारे में पूछा गया था कि अमेरिका ने जी-7 और नाटो देशों से चीन पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की अपील की है क्योंकि वह रूस से तेल खरीद रहा है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए लिन जियान ने कहा, ”यह अमेरिका का आर्थिक दबाव बनाने और एकपक्षीय तरीके से धौंस दिखाने वाला कदम है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों को कमजोर करता है और वैश्विक उद्योग व आपूर्ति शृंखलाओं की सुरक्षा और स्थिरता को खतरे में डालता है.” लिन जियान ने कहा, ”दबाव और धौंस से समस्याओं का हल नहीं निकलता. यूक्रेन संकट को लेकर चीन का रुख स्पष्ट और स्थिर है-समाधान सिर्फ संवाद और समझौते से ही संभव है.” अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को कहा था कि यूक्रेन युद्ध खत्म करने के लिए नाटो देशों को चीन पर 50 से 100 प्रतिशत तक का टैक्स लगाना चाहिए और रूस से तेल खरीदना बंद कर देना चाहिए.

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