मुंबई. बॉलीवुड अभिनेता मनोज वाजपेयी इस बात से निराश नहीं हैं कि फिल्म ”जोरम” और ”सिर्फ एक बंदा काफी है” में उनके दो सबसे प्रशंसित प्रदर्शनों को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में खासी सराहना नहीं मिली. अभिनेता का कहना है कि वह जो काम करते हैं, उसके लिए कोई उम्मीद नही रखते हैं. चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता वाजपेयी ने ”जोरम” में फरार आदिवासी व्यक्ति दसरू की आकर्षक भूमिका के लिए फिल्म समीक्षकों के साथ ही प्रशंसकों से सराहना मिली. उन्होंने फिल्म ”सिर्फ एक बंदा काफी है” में एक शक्तिशाली धर्मगुरु को चुनौती देने वाले वकील का किरदार निभाया था. इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ संवाद के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. यह पूछे जाने पर कि क्या अपने अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार न जीत पाने से वह दुखी हैं, अभिनेता ने कहा कि उनके लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है.
वाजपेयी ने कहा, ”मैं अपने काम से, खासकर पुरस्कार समारोहों से, कुछ भी उम्मीद नहीं करता. सभी पुरस्कारों का स्तर गिर रहा रहे है, ये विश्वसनीयता खो रहे हैं. इसी वजह से, मैं कभी भी उम्मीद नहीं करता.” उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ”एक बात जो कभी नहीं भूली जाएगी, वह यह है कि ”जोरम” एक बेहतरीन फिल्म है, जिसे सभी स्वीकार करेंगे, यह एक ऐसा अभिनय है जिसे मैं देखना पसंद करूंगा. जब मैं इसे देखता हूं, तो मुझे लगता है कि यह मैं नहीं हूं. यही वह एहसास है जिसके लिए कोई जीता है, और ऐसा करने के लिए किसी ने बहुत खून-पसीना बहाया है.” अभिनेता ने कहा कि कई पुरस्कार समारोहों ने अपना नजरिया बदल दिया है. उन्होंने कहा, ”लेकिन वे ऐसा ही चाहते हैं, मुझे कोई शिकायत नहीं है. मैं कौन होता हूं इसकी शिकायत करने वाला? ये उनका पुरस्कार है, ये उनका फैसला है.”


