राम जन्मभूमि का मुद्दा हिंदू-मुस्लिम का नहीं, बल्कि भारतीय-विदेशी का है: अमीश त्रिपाठी

vikasparakh
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बेंगलुरु. प्रसिद्ध लेखक अमीश त्रिपाठी ने यहां अपनी नई किताब ‘द चोल टाइगर्स’ के विमोचन के अवसर पर कहा कि इतिहास ने हमें राम जन्मभूमि को गलत नजरिए से देखना सिखाया है; यह हिंदू-मुस्लिम नहीं, बल्कि भारतीय-विदेशी का मुद्दा है. बैंगलोर इंटरनेशनल सेंटर में एक सितंबर को आयोजित विमोचन समारोह में ‘टीमलीज र्सिवसेज’ के अध्यक्ष और सह-संस्थापक मनीष सभरवाल के साथ बातचीत में, त्रिपाठी ने याद किया कि जब वह ”भारत के सबसे महान जीवित पुरातत्वविदों में से एक” और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक, के. के. मोहम्मद का उनके एक वृत्तचित्र के लिए साक्षात्कार कर रहे थे, तो उन्हें यह दृष्टिकोण देखने को मिला.
त्रिपाठी ने कहा, ”मोहम्मद साहब ने मुझसे कहा, ‘बाबर एक उज्बेक था, मैं एक भारतीय मुसलमान हूं, मेरा उससे क्या लेना-देना’?”

और उन्होंने कहा, ”हम राम जन्मभूमि मंदिर को गलती से हिंदू-मुस्लिम मुद्दे के रूप में देख रहे हैं. यह एक भारतीय-विदेशी मुद्दा है. एक विदेशी ने हमारे एक पूजा स्थल पर हमला किया. इसे देखने का यही तरीका है.” त्रिपाठी ने कहा, इतिहास पर्यवेक्षकों के पूर्वाग्रह और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रभावित होता है. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को ईसाई आक्रमण नहीं कहा जाता लेकिन तुर्की औपनिवेशिक शासन को इस्लामी आक्रमण कहा जाता है.

उन्होंने कहा, ”क्या आप लोगों ने कभी इस बारे में सोचा है? अगर आप वास्तव में इसके बारे में सोचें तो यह बहुत शरारतपूर्ण है. यह लगभग ऐसा है जैसे जो एक भारतीय-विदेशी मुद्दा था उसे बहुत शरारतपूर्ण तरीके से हिंदू-मुस्लिम मुद्दे में बदल दिया गया है. मैं समझ सकता हूं कि ब्रिटिश राज ऐसा क्यों करना चाहता था. हमारे अपने इतिहासकारों ने 1947 के बाद भी इसे क्यों जारी रखा?” हिंदू और भारतीय मुसलमान दुश्मन नहीं हैं, इस विचार को दोहराते हुए त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने ‘द चोल टाइगर्स’ में यह दिखाया कि महमूद गजनवी द्वारा भगवान सोमनाथ मंदिर पर किए गए हमले का बदला लेने वाले उनके पात्र हिंदू और मुसलमान दोनों हों, जो 1025 ईसवी में घटित होता है.

त्रिपाठी ने कहा, ”तो, ‘द चोल टाइगर्स’ में, राजेंद्र चोल के नेतृत्व में, पूरे भारत से योद्धा गजनी जाते हैं. इस दल में एक महिला भी है. हिंदू और मुसलमान दोनों हैं जो भारत के लिए जबरदस्त लड़ाई लड़ते हैं.” उन्होंने कहा कि उनकी पुस्तक के संवाद भी इस विचार को पुष्ट करते हैं. त्रिपाठी ने कहा, ”मैंने अपनी पुस्तक में एक पंक्ति का प्रयोग किया है. यह मेरी मातृभाषा की एक कहावत का रूपांतरण है. कौरव 100 हो सकते हैं, पांडव पांच हो सकते हैं. लेकिन अगर कोई बाहरी आता है, तो हम 105 हो जाते हैं. यही हमारा दृष्टिकोण होना चाहिए.” मशहूर युवा लेखक ने कहा कि धर्म और पहचान जैसे संभावित रूप से विवादास्पद विषयों पर लिखने के बावजूद, वह भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान और सच्ची श्रद्धा के साथ विषयों पर विचार करते हुए विवादों से बचते हैं.

उन्होंने कहा, ”बिक्री के लिए आपको विवाद की ज़रूरत नहीं है. मैं इसका प्रमाण हूं. मुझे लगता है कि इसका श्रेय हमारे भारतीय होने को जाता है. हम सहज रूप से अलग-अलग सच्चाइयों को समझते हैं. मुझे नहीं लगता कि अगर आप सम्मान के साथ व्याख्या करें, तो भारतीयों को अलग व्याख्या से कोई समस्या होगी.” त्रिपाठी ने कहा कि उनकी किताबें तथ्यों पर आधारित हैं. उन्होंने कहा कि ‘द चोल टाइगर्स’ इसलिए लिखी गई क्योंकि पिछले 1,300 वर्षों के इतिहास को जिस तरह से हमारे सामने प्रस्तुत किया गया है, उस पर उनके कुछ सवाल थे. त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने ‘द चोल टाइगर्स’ में राजेंद्र चोल को केंद्रीय पात्र इसलिए बनाया क्योंकि ”हमें चोल शासकों के बारे में और जानने की ज़रूरत है.” भाषा वैभव नरेश

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