भारत के 3,000 वर्षों तक दुनिया का सिरमौर रहने के दौरान विश्व में कोई कलह नहीं थी: भागवत

vikasparakh
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इंदौर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि पारंपरिक दर्शन पर श्रद्धा रखने की बदौलत देश सबकी भविष्यवाणियां झूठी साबित करके लगातार आगे बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि भारत के 3,000 वर्षों तक दुनिया का सिरमौर रहने के दौरान विश्व में कोई कलह नहीं थी.

भागवत ने यह भी कहा कि ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन र्चिचल ने एक बार कहा था कि भारत ब्रितानी शासन से स्वतंत्र होने पर एक नहीं रह पाएगा और बंट जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जो कभी बंट गया है, “हम वह भी फिर से मिला लेंगे.” भागवत ने यह टिप्पणियां मध्यप्रदेश के काबीना मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल की पुस्तक ‘परिक्रमा कृपा सार’ का इंदौर में विमोचन के दौरान की.
संघ प्रमुख की यह प्रतिक्रिया ऐसे वक्त आई है जब देश की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में उम्मीद से बेहतर 7.80 प्रतिशत रही है. अमेरिका की ओर से भारी शुल्क लगाए जाने से पहले की पांच तिमाहियों में यह सबसे अधिक है.

संघ प्रमुख ने इस मौके पर आयोजित समारोह में कहा कि भारतीय नागरिकों के पूर्वजों ने अनेक पंथ-संप्रदायों के माध्यम से कई रास्ते दिखाकर सबको बताया है कि ज्ञान, कर्म और भक्ति की संतुलित त्रिवेणी जीवन में कैसे बहाई जाती है. भागवत ने कहा कि भारत जीवन जीने के इस पारंपरिक दर्शन पर आज भी श्रद्धा रखता है, इसलिए सबकी भविष्यवाणियां झूठी साबित करके देश विकास के पथ पर लगातार आगे बढ़ रहा है.

संघ प्रमुख ने कहा,” (ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री) विंस्टन र्चिचल ने एक बार कहा था कि (ब्रितानी शासन से) स्वतंत्र होने पर तुम (भारत) टिक नहीं सकोगे और बंट जाओगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब खुद इंग्लैंड बंटने की स्थिति में आ रहा है, पर हम नहीं बंटेगे. हम आगे बढ़ेंगे. हम कभी बंट गए थे, लेकिन वह भी हम मिला लेंगे फिर से.” भागवत ने कहा कि निजी स्वार्थों के कारण ही दुनिया में अलग-अलग संघर्ष चलते हैं और सारी समस्याएं सामने आती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारत जब 3,000 वर्षों तक दुनिया का सिरमौर था, तब दुनिया में कोई कलह नहीं थी. भागवत ने कहा कि भारत में गौ माता, नदियों और पेड़-पौधों की पूजा के जरिये प्रकृति की आराधना की जाती है और प्रकृति से देश का नाता जीवंत और चैतन्य अनुभूति पर आधारित है.

उन्होंने कहा,”आज की दुनिया (प्रकृति से) इस नाते को तरस रही है. पिछले 300-350 वर्षों से उन्हें (दुनिया के देशों) को बताया जा रहा है कि सब लोग अलग-अलग हैं और जो बलवान है, वही जिएगा. उन्हें बताया जा रहा है कि अगर वे किसी के पेट पर पैर रखकर या किसी का गला काट कर भी बलवान बनते हैं, तो कोई बात नहीं है.” भागवत ने कहा,”पहले (कपड़ों का) गला और जेब काटने का काम केवल दर्जी करते थे. अब सारी दुनिया कर रही है. वे जानते हैं कि इससे गड़बड़ हो रही है, लेकिन वे रुक नहीं सकते क्योंकि उनके पास विश्वास और श्रद्धा नहीं है.” उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति ‘तेरे-मेरे के भेद’ से ऊपर उठने का संदेश देती है और सभी मनुष्यों में परस्पर आत्मीयता और अपनापन आवश्यक है.

संघ प्रमुख ने कहा कि मनुष्य के लिए ज्ञान और कर्म, दोनों मार्ग जरूरी हैं, लेकिन ‘नि्क्रिरय ज्ञानी’ किसी काम के नहीं होते. भागवत ने कहा,”ज्ञानी लोगों के नि्क्रिरय होने के कारण ही सब गड़बड़ होती है और अगर कर्म करने वाले किसी व्यक्ति को ज्ञान नहीं है, तो यह कर्म पागलों का कर्म हो जाता है.” प्रदेश के काबीना मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल की पुस्तक के विमोचन के कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्यों समेत समाज के अलग-अलग तबकों के लोग बड़ी तादाद में मौजूद थे.
पटेल की पुस्तक उनकी दो नर्मदा परिक्रमा यात्राओं से प्रेरित है. भागवत ने पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा,”नर्मदा नदी की परिक्रमा सर्वत्र श्रद्धा का विषय है. हमारा देश श्रद्धा का देश है. यहां कर्मवीर भी हैं और तर्कवीर भी हैं. दुनिया श्रद्धा और विश्वास पर चलती है.” संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि भारत में जो श्रद्धा है, वह प्रत्यक्ष प्रतीति (ज्ञान) और प्रमाणों पर आधारित है.

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