सुरक्षित ठिकानों से भूमिगत शरणस्थलों तक आतंकी संगठनों ने बदली रणनीति

vikasparakh
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श्रीनगर. जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी संगठनों ने अपनी रणनीति बदलते हुए अब स्थानीय घरों में पनाह लेने की बजाय घने जंगलों और ऊंचे पहाड़ी इलाकों में भूमिगत बंकर बनाने शुरू कर दिए हैं. अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी. स्थानीय समर्थन में कमी के कारण आतंकवादी संगठनों की रणनीति में यह बदलाव सेना और अन्य सुरक्षा बलों के लिए एक नई चुनौती प्रस्तुत करता है.

पिछले सप्ताह कुलगाम जिले के ऊपरी क्षेत्रों में हुई मुठभेड़ के दौरान इसका पता चला, जहां दो आतंकवादी मारे गए थे. जैसे-जैसे अभियान आगे बढ़ा, सुरक्षा बलों को एक गुप्त सुरंग मिली, जिसमें राशन, छोटे गैस स्टोव, प्रेशर कुकर, साथ ही हथियार और गोला-बारूद भी बरामद हुए. एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि यह प्रवृत्ति कुलगाम और शोपियां जिलों के साथ-साथ जम्मू क्षेत्र में पीर पंजाल के दक्षिण में व्यापक हो गई है, जहां घने जंगल आतंकवादियों के लिए आदर्श छिपने की जगह उपलब्ध कराते हैं.

भले ही सुरक्षा र्किमयों ने इनमें से कुछ नए ठिकानों का पता लगाने में सफलता प्राप्त कर ली है, लेकिन अधिकारियों की चिंता बढ़ती जा रही है, विशेषकर खुफिया जानकारी मिलने के बाद कि आतंकवादियों को ऊंची और मध्य पहाड़ियों में रहने तथा सीमा पार से निर्देश मिलने पर हमले करने के लिए कहा गया है.

एक अधिकारी ने कहा, “यह मारे गए आतंकियों की संख्या का सवाल नहीं है. चिंता की बात यह है कि अब आतंकवादी इन भूमिगत बंकरों के भीतर अच्छी तरह से जमे हुए दिख रहे हैं.” सेना की उत्तरी कमान के पूर्व प्रमुख और 2016 की सफल र्सिजकल स्ट्राइक का नेतृत्व कर चुके सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डी एस हुड्डा ने कहा कि ऊंचाई वाले इन खाइयों और बंकरों की रणनीति 1990 और शुरुआती 2000 के दशक में अपनाई गई आतंकवादी रणनीति की याद दिलाती है.

लेफ्टिनेंट जनरल हुड्डा ने यह भी कहा कि मानव स्रोतों से मिलने वाली खुफिया सूचनाओं (‘ूमन इंटेलिजेंस) का अभाव वर्तमान में एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है, जबकि पहले यह आतंकवाद विरोधी अभियानों में एक अहम साधन था. फिर भी, उनका मानना है कि सेना इस नई चुनौती से निपटने के लिए अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन अवश्य करेगी.

जम्मू-कश्मीर पुलिस में तीन दशक तक सेवा दे चुके पुडुचेरी पुलिस के पूर्व महानिदेशक बी श्रीनिवास ने भी इस आकलन से सहमति जताई. उन्होंने कहा कि आतंकी अब कस्बों और गांवों में शरण नहीं ले पा रहे हैं, इसलिए वे इन बंकरों का निर्माण करने को मजबूर हैं.
स्थानीय लोगों द्वारा अलगाववादी विचारधारा से दूरी बनाए जाने के कारण अब घुसपैठिए आतंकी इन गुप्त सुरंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि स्थानीय लोगों की नजरों से बच सकें, जिन्हें अब वे मुखबिर मानते हैं.

यह 2003 में ‘ऑपरेशन सर्प विनाश’ के दौरान देखी गई स्थिति की पुनरावृत्ति होगी, जब सुरक्षाबलों ने पुंछ क्षेत्र में छिपे हुए आतंकी ठिकानों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया था इस नई चुनौती का सामना करने के लिए सुरक्षा एजेंसियां तकनीकी समाधानों का सहारा लेने की योजना बना रही हैं और आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान ‘ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार’ (जीपीआर) से लैस ड्रोन और भूकंपीय सेंसर का इस्तेमाल करने पर विचार कर रही हैं.

ड्रोन उन दुर्गम इलाकों तक पहुंच सकते हैं, जहां सामान्य रूप से पहुंचना कठिन है, जबकि ‘जीपीआर’ और भूकंपीय ‘सेंसर’ धरती के भीतर की खाली जगहों और संरचनात्मक बदलावों की पहचान कर सकते हैं, जिससे ऐसे भूमिगत बंकरों की सटीक जानकारी मिल सकती है. इस समय सुरक्षा बलों का प्राथमिक उद्देश्य इन जंगल क्षेत्रों में खुफिया तंत्र को मजबूत करना और इन नई तकनीकों की मदद से बचे हुए आतंकियों को नि्क्रिरय करना है.

अतीत में, यानी 2020 से 2022 के बीच, सेना को भूमिगत बंकरों और कृत्रिम सुरंगों से जूझना पड़ा था, लेकिन वे मुख्यत? पुलवामा, कुलगाम और शोपियां के रिहायशी क्षेत्रों में स्थित थे. अधिकारियों ने उदाहरण देते हुए बताया कि ‘राम्बी आरा’ की धारा के बीच में एक बंकर तैयार किया गया था, जो अक्सर जल स्तर में उतार-चढ़ाव और बाढ़ से प्रभावित रहता है. सैनिकों ने एक खाली तेल के ड्रम का मुंह खुला हुआ देखा, जिसे बाद में आतंकवादियों ने बंकर में प्रवेश करने के लिए इस्तेमाल किया.

उस समय पारंपरिक कश्मीरी घरों में सुरंगनुमा गुफाओं और भूमिगत बंकरों की कई रपट सामने आई थीं. सेना को बंडपोह में भी एक भूमिगत बंकर मिला, जो घने सेब के पेड़ों से ढका हुआ और ऊंचाई पर स्थित था. आतंकियों ने वहां भूमिगत रूप से एक कमरा तैयार कर लिया था. बंकर का पर्दाफाश तब हुआ, जब जवानों ने देखा कि एक पॉलीथिन शीट जमीन पर बिछी है और उसके आसपास की मिट्टी हाल ही में भरी गई है. शोपियां के लाबिपुरा में एक और दिलचस्प लुका-छिपी की रणनीति देखने को मिली, जहां आतंकवादियों ने नदी के किनारे एक लोहे के बक्से को ढक दिया और जमीन के नीचे छिपते हुए सांस लेने के लिए एक छोटी पाइप लगा दी.

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