IIT-गुवाहाटी की टीम ने कैंसर पैदा करने वाले जल प्रदूषकों का पता लगाने के लिए नैनोसेंसर बनाया

vikasparakh
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गुवाहाटी. आईआईटी-गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने कैंसर पैदा करने वाले जल प्रदूषकों का तुरंत पता लगाने के लिए दूध प्रोटीन और थाइमिन से नैनोसेंसर विकसित किया है. संस्थान ने सोमवार को यह जानकारी दी. कार्बन डॉट्स और पराबैंगनी प्रकाश का उपयोग करके, यह सेंसर 10 सेकंड से भी कम समय में पारे और हानिकारक एंटीबायोटिक संदूषणों का पता लगा सकता है.

संस्थान ने एक बयान में कहा कि तेज.ी से बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिक गतिविधियों और दवाओं के अत्यधिक उपयोग के कारण जल संदूषण एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है, जिससे दुनिया भर में पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य को खतरा हो रहा है.
टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक दवाओं का एक वर्ग है, जिसका उपयोग आमतौर पर निमोनिया और श्वसन संक्रमण के लिए किया जाता है. यदि इसका उचित निपटान नहीं किया जाता है, तो यह आसानी से पर्यावरण में प्रवेश कर सकता है और पानी को दूषित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप एंटीबायोटिक प्रतिरोध और अन्य स्वास्थ्य संबंधी खतरे हो सकते हैं.

इसी प्रकार, पारा, अपने कार्बनिक रूप में, कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकार, हृदय रोग और अन्य जानलेवा बीमारियों का कारण बन सकता है. जल गुणवत्ता और जन स्वास्थ्य, दोनों की रक्षा के लिए इन प्रदूषकों का सटीक और शीघ्रता से पता लगाना आवश्यक है.
इस चुनौती का समाधान करने के लिए, आईआईटी-गुवाहाटी की शोध टीम ने नैनोसेंसर बनाया है, जो एक मीटर के कुछ अरबवें हिस्से के आकार के अत्यंत सूक्ष्म पदार्थों से बना एक सेंसर है.

यह सेंसर कार्बन डॉट्स का उपयोग करता है, जो पराबैंगनी प्रकाश में चमकते हैं. इसमें कहा गया है कि पारा या टेट्रासाइक्लिन जैसे हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति में, इन कार्बन डॉट्स की चमक मंद हो जाती है, जिससे संदूषण का त्वरित और स्पष्ट संकेत मिलता है. आईआईटी-गुवाहाटी ने कहा कि इसकी बहुमुखी उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए, शोधकर्ताओं ने सेंसर का परीक्षण विभिन्न वातावरणों- जैसे नल और नदी के पानी, दूध, मूत्र और सीरम के नमूनों में किया है. यह शोध प्रयोगशाला स्तर पर है और निष्कर्षों का आगे सत्यापन किया जाना बाकी है.

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