श्रद्धालु विवाह समारोह स्थलों के निर्माण के लिए मंदिरों को धन नहीं देते: न्यायालय

vikasparakh
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नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि श्रद्धालुओं द्वारा दिया गया धन विवाह समारोह स्थलों के निर्माण के लिए नहीं होता. न्यायालय ने उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि मंदिर के धन को सार्वजनिक या सरकारी धन नहीं माना जा सकता.

मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने तमिलनाडु के विभिन्न स्थानों पर पांच मंदिरों के धन से शादी स्थलों के निर्माण की अनुमति देने वाले सरकारी आदेशों को रद्द कर दिया था. गत 19 अगस्त के अपने आदेश में, उच्च न्यायालय ने कहा कि विवाह समारोहों के लिए किराए पर देने के लिए मैरिज हॉल का निर्माण करने का सरकार का निर्णय ‘धार्मिक उद्देश्यों’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता.

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी और उसने कहा, ”भक्त इन विवाह स्थलों के निर्माण के लिए मंदिर को अपना धन नहीं देते हैं. यह मंदिर के सुधार के लिए हो सकता है.” पीठ ने पूछा, ”यदि मंदिर परिसर में विवाह समारोह चल रहा हो और सभी प्रकार के अश्लील गाने बजाए जा रहे हों, तो क्या मंदिर का यही उद्देश्य है?” शीर्ष अदालत ने इसके बजाय सुझाव दिया कि इस धन का उपयोग शिक्षा और चिकित्सा संस्थानों जैसे धर्मार्थ कार्यों के लिए किया जाए.

वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और अन्य वकील याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. पीठ ने कहा कि मुद्दा यह है कि सरकार द्वारा लिया गया निर्णय सही था या गलत. हालांकि, शीर्ष अदालत ने चुनौती पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की और इसे 19 नवंबर के लिए स्थगित कर दिया.

पीठ ने कहा, ”हम इस मामले की सुनवाई करेंगे. हम याचिकाकर्ताओं को कोई स्थगन आदेश नहीं दे रहे हैं.” उच्च न्यायालय का यह निर्णय मंदिर के धन से विवाह मंडपों के निर्माण की अनुमति देने वाले सरकारी आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है.
सरकारी आदेशों में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के मंत्री के बयान का खुलासा किया गया है, जिन्होंने विधानसभा में बजट भाषण के दौरान मंदिर के धन से 80 करोड़ रुपये खर्च करके 27 मंदिरों में विवाह मंडपों के निर्माण की घोषणा की थी.

उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम और उसके नियमों के प्रावधानों के तहत, सरकार को मंदिर के धन या अधिशेष धन का उपयोग विवाह मंडपों के निर्माण के लिए करने का कोई अधिकार नहीं है.
याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय को यह भी बताया कि मंदिर का धन व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए नहीं है और ये सरकारी आदेश तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1959 की धारा 35, 36 और 66 का उल्लंघन हैं. राज्य के वकील ने उच्च न्यायालय को बताया कि हिंदू विवाह एक धार्मिक गतिविधि है और हिंदुओं को कम खर्च में विवाह संपन्न कराने में सहायता करने के लिए, सरकार ने विवाह मंडपों के निर्माण का निर्णय लिया.

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