सत्रह सितंबर से पहले मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र देना शुरू करें: जरांगे ने सरकार से कहा

vikasparakh
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छत्रपति संभाजीनगर. आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे ने सोमवार को मांग की कि महाराष्ट्र सरकार मराठों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र जारी करने के लिए पिछले सप्ताह जारी सरकारी आदेश को 17 सितंबर से पहले लागू करे, अन्यथा वह फिर से एक ”कठोर निर्णय” लेंगे. जरांगे ने यह भी दावा किया कि उनकी 96 प्रतिशत मांगें पूरी हो चुकी हैं. उन्होंने कहा कि मराठा समुदाय को ‘पूर्ण न्याय’ दिलाने के लिए उनका संघर्ष जारी रहेगा.

उन्होंने विश्वास जताया कि मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र के मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण मिलेगा. जरांगे ने आरक्षण की मांग को लेकर मुंबई में पांच दिन से जारी अपना अनशन दो सितंबर को तब समाप्त कर दिया जब सरकार ने मराठा समुदाय के उन सदस्यों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की, जिनके पास कुनबी वंश से संबंधित ऐतिहासिक प्रमाण हैं. यह समुदाय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में वर्गीकृत है. सरकार ने इसकी घोषणा एक प्रस्ताव के माध्यम से की. यह घोषणा राज्य के मंत्रियों और जरांगे के बीच एक लंबी बातचीत के बाद की गई थी. कुनबी समुदाय राज्य में पारंपरिक किसान समुदाय है और महाराष्ट्र में उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का लाभ दिलाने के लिए ओबीसी श्रेणी की सूची में शामिल किया गया है.

सामाजिक न्याय एवं विशेष सहायता विभाग द्वारा जारी सरकारी आदेश (जीआर) में हैदराबाद गजट को लागू करने का भी उल्लेख है.
छत्रपति संभाजीनगर के एक अस्पताल में पत्रकारों से बातचीत में जरांगे ने कहा, ”हमें उम्मीद है कि सरकार राज्य के तालुका स्तर के अधिकारियों से जीआर पर कार्रवाई करने को कहेगी. हमें उम्मीद है कि 17 सितंबर से पहले काम शुरू हो जाएगा, अगर ऐसा नहीं हुआ तो मुझे कड़े फैसले लेने होंगे.” पिछले हफ़्ते मुंबई में अनशन समाप्त करने के बाद से ही उनका अस्पताल में इलाज जारी है.

उन्होंने कहा, ”प्रमाणपत्रों का वितरण 17 सितंबर से पहले जीआर के आधार पर शुरू हो जाना चाहिए. मुझे विश्वास है कि सरकार इस पर कार्रवाई करेगी. अगर वे येओला (परोक्ष तौर पर मंत्री छगन भुजबल की ओर इशारा करते हुए) के किसी व्यक्ति की बात सुनते हैं और कुछ भी गलत होता है तो हम 1994 के जीआर को भी चुनौती देंगे, जिसके तहत हमारा आरक्षण दूसरों को दे दिया गया था.” भुजबल, अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत मराठों को आरक्षण दिए जाने का विरोध करते रहे हैं. भुजबल एक ओबीसी नेता हैं और नासिक के येओला से विधायक हैं.

सत्रह सितंबर को मराठवाड़ा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह मराठवाड़ा के भारत में एकीकरण और निजाम के शासन वाले हैदराबाद राज्य के भारत संघ में विलय की वर्षगांठ का प्रतीक है. जरांगे ने दावा किया कि यह कहने वाले कुछ मराठा विद्वान “पागल हो गए हैं” कि जीआर से समुदाय को कोई फायदा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि वे सरकार के आदेश की वजह से सो नहीं पा रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि मराठा आरक्षण से संबंधित मामलों में अदालत में याचिका दायर करने वाले कार्यकर्ता विनोद पाटिल ने पिछले हफ्ते योग्य समुदाय के सदस्यों को कुनबी प्रमाणपत्र देने के जीआर को “पूरी तरह बेकार” बताया था और दावा किया था कि इससे उन्हें कोई खास फायदा नहीं होगा.

जरांगे ने कहा, ”राज्य में मराठा समुदाय को जीआर के बारे में थोड़ा धैर्य रखना चाहिए.” उन्होंने कहा, ”हम अपनी आगे की नीति की घोषणा बीड के नारायणगढ़ में दशहरा रैली में करेंगे. यह रैली बहुत बड़ी नहीं होगी, लेकिन होगी.” बाद में जरांगे जालना जिले में अपने पैतृक गांव अंतरवाली सराटी वापस लौटे, जहां मराठा समुदाय के लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया.

बड़ी भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने आंदोलन के दौरान उनके साथ खड़े रहने के लिए मराठा समुदाय का आभार व्यक्त किया.
उन्होंने पत्रकारों से कहा, “आज अंतरवाली सराटी में दिवाली जैसा माहौल है. अब मैं एक महीने के लिए आराम करूंगा. मराठा समुदाय को आरक्षण को लेकर चिंता करने की ज.रूरत नहीं है, क्योंकि मैं इस मामले को देख रहा हूं.” जरांगे ने कहा, ”हमारी 96 प्रतिशत मांगें पूरी हो गई हैं. सरकार ने जीआर जारी कर दिया है और आरक्षण सुनिश्चित हो गया है. मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र के मराठों को आरक्षण मिलेगा, चाहे कोई कुछ भी कहे.” उन्होंने अपने गांव के निवासियों की प्रशंसा की और आंदोलन की सफलता का श्रेय पूरे महाराष्ट्र के गरीब लोगों और महिलाओं के समर्थन को दिया.

जरांगे ने कहा, ”यह गरीब मराठों और महिलाओं की जीत है जिन्होंने एकजुटता दिखाई. पूरे महाराष्ट्र की महिलाओं ने हमारे आंदोलन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.” उन्होंने कहा कि आंदोलन की सफलता का श्रेय मराठा समुदाय, खासकर महिलाओं को जाता है और उन्होंने आश्वासन दिया कि जब तक उनकी सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक संघर्ष जारी रहेगा.

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