नयी दिल्ली. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंगलवार को कहा कि भारत बहुपक्षवाद में विश्वास रखता है और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है, जबकि विकसित देश इस दिशा में विकासशील देशों को वित्त और प्रौद्योगिकी प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफल रहे हैं. यादव ने ’20वें सीआईआई सस्टेनेबिलिटी समिट’ में एक परिचर्चा के दौरान कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक खतरा है, लेकिन इसका सबसे गंभीर प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ रहा है, जो इस संकट के लिए जिम्मेदार नहीं हैं.
यादव ने कहा, ”हमारा पहला रुख यह है… हमें बहुपक्षीय मंचों पर विश्वास है और हमारे प्रधानमंत्री का स्पष्ट संदेश है कि भारत समस्या का नहीं, बल्कि समाधान का हिस्सा होगा.” उन्होंने आगे कहा, ”विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्त और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है और विकसित देशों ने लंबे समय से अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं किया है.” मंत्री ने कहा कि दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत, अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के तहत कई प्रतिबद्धताओं को पहले ही पूरा कर चुका है.
उन्होंने कहा, ”भारत इस चुनौती का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है. पारिस्थितिकी और विकास के बीच संतुलन आवश्यक है और उद्योग को हरित प्रौद्योगिकी विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए.” यादव ने कहा कि दुनिया को भारत के विकास मॉडल पर गौर करने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा कि भारत लगभग सात प्रतिशत की दर से सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में वैश्विक विकास के पुनरुत्थान का नेतृत्व करेगा.
उन्होंने कहा, ”मेरे विचार से, भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने लक्षित योजना कार्यान्वयन, बुनियादी ढांचे में निवेश, स्थानीय प्रतिबद्धता और बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं पर ठोस उपलब्धियों के माध्यम से नीतिगत परिदृश्य में सतत विकास को सफलतापूर्वक अपनाया है.” सोमवार को यहां कॉप30 के अध्यक्ष आंद्रे कोरेया डू लागो के साथ अपनी बैठक के बारे में यादव ने कहा कि उन्होंने पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 पर काम को आगे बढ़ाने के तरीकों के साथ-साथ जलवायु वित्त और ‘ग्लोबल साउथ के अधिकारों’ से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की.
इस वर्ष का संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन नवंबर में ब्राजील के बेलेम में आयोजित किया जाएगा. यह बाकू में कॉप29 में वित्त पर निराशाजनक परिणाम, पेरिस समझौते से अमेरिका के हटने, बढ़ते व्यापार तनाव, नीतिगत अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक संघर्षों के बाद बहुपक्षीय प्रयासों, विशेष रूप से जलवायु वार्ताओं को लेकर बढ़ते संदेह के बीच किया जाएगा. यादव ने यह भी कहा कि औद्योगिक विकास के दबाव, मानव जनित हस्तक्षेप और उपभोग आधारित मॉडलों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था अपनी गति खो रही है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 2025 में तीन प्रतिशत और 2026 में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है, जो महामारी-पूर्व औसत से काफी कम है. उन्होंने कहा कि व्यापार तनाव, नीतिगत अनिश्चितताओं, संघर्षों और निवेश बाधाओं ने दृष्टिकोण को और कमजोर कर दिया है. उन्होंने आगे कहा कि देशों को एक ‘नया विकास मॉडल’ अपनाना चाहिए जो अधिक हितकारी, समावेशी, लचीला और स्थिरता पर आधारित हो.


