नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को निर्देश दिया कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में मतदाताओं के पहचान प्रमाण के रूप में ‘आधार’ कार्ड को ”अवश्य” शामिल किया जाए तथा निर्वाचन आयोग को इस निर्देश को लागू करने के लिए समय दिया.
एसआईआर प्रक्रिया में 11 निर्धारित दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड को जोड़ते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि ‘आधार’ नागरिकता का प्रमाण नहीं होगा. बहुर्चिचत मुद्दे पर अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि निर्वाचन आयोग मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए मतदाता द्वारा पेश किये गए आधार नंबर की वास्तविकता का पता लगा सकता है. शीर्ष अदालत ने मतदाताओं से आधार कार्ड स्वीकार नहीं करने के लिए निर्वाचन अधिकारियों को जारी किये गए कारण बताओ नोटिस पर भी आयोग से स्पष्टीकरण मांगा.
पीठ ने कहा, ”यह स्पष्ट किया जाता है कि बिहार में मतदाताओं के नाम शामिल करने/पहचान के लिए आधार को भी पहचान दस्तावेज के रूप में शामिल किया जाए.” पीठ ने कहा, ”आधार को निर्वाचन आयोग द्वारा 12वें दस्तावेज के रूप में माना जाएगा. हालांकि, मतदाताओं द्वारा प्रस्तुत आधार की वैधता और वास्तविकता की जांच करने की अधिकारियों को छूट है. यह स्पष्ट किया जाता है कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं माना जाएगा.” बिहार में वर्तमान में ऐसे 11 निर्धारित दस्तावेज हैं जिन्हें मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल होने के लिए अपने प्रपत्रों के साथ जमा करना होगा.
न्यायालय द्वारा सोमवार को जारी किया गया आदेश ‘आधार’ को पहचान के वैध प्रमाण के रूप में पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र सहित अन्य निर्धारित दस्तावेजों के समान बनाता है. आयोग की 24 जून की अधिसूचना के अनुसार, अंतिम रूप से दी गई मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी.
न्यायालय ने कहा कि कोई भी नहीं चाहता कि निर्वाचन आयोग अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची में शामिल करे. पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि केवल वास्तविक नागरिकों को ही मतदान करने की अनुमति हो और जाली दस्तावेजों के आधार पर वास्तविक होने का दावा करने वालों को मतदाता सूची से बाहर रखा जाए.
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और शोएब आलम ने आरोप लगाया कि शीर्ष अदालत के तीन आदेशों के बावजूद, जिसमें निर्वाचन आयोग को आधार कार्ड को पहचान के वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार करने को कहा गया था, आयोग इसे स्वीकार नहीं कर रहा है और यहां तक कि उन निर्वाचन अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस भी जारी कर रहा है, जो इसे मतदाताओं से स्वीकार कर रहे थे.
आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि मसौदा मतदाता सूची में शामिल 7.24 करोड़ मतदाताओं में से 99.6 प्रतिशत ने दस्तावेज जमा कर दिए हैं और याचिकाकर्ताओं द्वारा ‘आधार’ को 12वें दस्तावेज के रूप में शामिल करने के अनुरोध से कोई व्यावहारिक उद्देश्य पूरा नहीं होगा. पीठ ने आधार अधिनियम 2016 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों का हवाला दिया और कहा कि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन इसे पहचान के प्रमाण के रूप में माना जा सकता है. न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि बिहार में एसआईआर के लिए सूचीबद्ध 11 निर्धारित दस्तावेजों में से केवल पासपोर्ट और जन्म प्रमाण पत्र ही ठोस प्रमाण हैं.
उन्होंने कहा, ”आधार जनप्रतिनिधित्व अधिनियम से अलग नहीं है और अधिनियम की धारा 23 (4) आधार को पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार करती है.” न्यायमूर्ति बागची ने कहा, ”कानून और न्यायिक निर्णय दोनों कहते हैं कि आधार नागरिकता का वैध प्रमाण नहीं है. लेकिन यह वास्तव में पहचान का प्रमाण है और कानून के अनुसार इसका कुछ महत्व है. आपको इसकी पड़ताल करनी चाहिए.” सुनवाई के दौरान पीठ ने सिब्बल से कहा कि केवल आधार कार्ड नागरिकता का वैध प्रमाण नहीं हो सकता और इसके साथ अन्य दस्तावेज भी होने चाहिए. सिब्बल ने कहा कि वह नहीं चाहते कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाए, बल्कि मतदाताओं के लिए पहचान के वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाए, क्योंकि बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) किसी व्यक्ति की नागरिकता का निर्धारण नहीं कर सकते.
हालांकि, द्विवेदी ने कहा कि याचिकाकर्ता असल में चाहते हैं कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में माना जाए और उन्होंने इसका ”दुरुपयोग” होने के प्रति आगाह किया. द्विवेदी ने कहा कि मतदाता सूची के लिए, निर्वाचन आयोग के पास नागरिकता की जांच करने का अधिकार है. उन्होंने दावा किया कि उन्होंने लगभग 0.3 प्रतिशत अवैध प्रवासियों का पता लगाया है. असम और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में एसआईआर की मांग करने वाले अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि अगर आधार की अनुमति दी गई, तो पूरी पुनरीक्षण प्रक्रिया निरर्थक हो जाएगी क्योंकि रोहिंग्याओं सहित अवैध प्रवासी मतदाता बन जाएंगे.
पीठ ने एक बार फिर कहा कि भारत में हर दस्तावेज जाली हो सकता है, लेकिन अधिकारियों द्वारा उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि की जा सकती है. शीर्ष अदालत ने सुनवाई 15 सितंबर के लिए स्थगित कर दी और निर्वाचन आयोग से आदेश को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने को कहा. इससे पहले एक सितंबर को, राजनीतिक दलों द्वारा समयसीमा बढ़ाने के लिए दायर कुछ अर्जियों पर सुनवाई करते हुए, शीर्ष अदालत को निर्वाचन आयोग ने सूचित किया था कि एसआईआर की कवायद के तहत बिहार में तैयार की गई मसौदा मतदाता सूची में दावे, आपत्तियां और सुधार एक सितंबर के बाद भी दायर किए जा सकते हैं, लेकिन मतदाता सूची को अंतिम रूप दिए जाने के बाद इन पर विचार किया जाएगा.


