संयुक्त राष्ट्र/जिनेवा. भारत ने रोहिंग्या मुसलमानों के कुछ समूहों को भूमि और समुद्री मार्ग से निर्वासित किया है. यह दावा संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने सोमवार को जिनेवा में मानवाधिकार परिषद के 60वें सत्र में वैश्विक स्तर की अद्यतन जानकारी प्रस्तुत करते हुए किया. तुर्क ने कहा कि कुछ देशों में प्रवासियों और शरणार्थियों के अधिकारों का उल्लंघन करने वाली नीतियों और प्रथाओं को सामान्य बना दिया गया है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है.
उन्होंने कहा, ”मानवाधिकार- सभी मानवाधिकार- समृद्ध समाजों की मजबूत नींव हैं, लेकिन आज इन अधिकारों को कमजोर करने वाले खतरनाक रुझान वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे हैं.” तुर्क ने पाकिस्तान और ईरान द्वारा लाखों अफगानों को बलपूर्वक वापस भेजे जाने पर भी चिंता जताई और कहा कि भारत ने भी रोहिंग्या मुसलमानों के समूहों को देश से निकाल दिया है.
उन्होंने जर्मनी, यूनान, हंगरी और अन्य यूरोपीय देशों की उन हालिया नीतियों पर भी चिंता जताई, जिनका उद्देश्य शरण की मांग के अधिकार को सीमित करना है. तुर्क ने यह भी बताया कि अमेरिका ने अल सल्वाडोर, दक्षिण सूडान, एस्वातिनी और रवांडा सहित कई देशों के साथ ऐसे समझौते किए हैं, जिनके तहत तीसरे देशों के नागरिकों को उनके अपने देश के बजाय अन्य स्थानों पर भेजा जा रहा है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन की आशंका है.
मानवाधिकार संस्था ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ के अनुसार, भारत में लगभग 40,000 रोहिंग्या रह रहे हैं, जिनमें से कम से कम 20,000 संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी में पंजीकृत हैं. उन्होंने सभी देशों से आग्रह किया कि वे इस दिशा में प्रयास करें, ताकि हर बच्चा- चाहे वह भविष्य में किसान हो, डॉक्टर हो या दुकानदार- यह समझे कि मानवाधिकार उसका जन्मसिद्ध अधिकार है.


