नयी दिल्ली. सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने मंगलवार को किसी भी युद्धक्षेत्र में थल सेना की प्रधानता को रेखांकित किया और कहा कि भारत के संदर्भ में जमीन पर वर्चस्व जीत की कुंजी रहेगी. यहां एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में उन्होंने किसी भी युद्ध में थल सेना के महत्व पर ज.ोर दिया और पिछले महीने अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन के बीच यूक्रेन संघर्ष पर हुई शिखर वार्ता का ज.क्रि किया.
द्विवेदी ने कहा, ”जब आप दोनों राष्ट्रपतियों के बीच हुए अलास्का सम्मेलन पर गौर करते हैं, तो उन्होंने सिर्फ इस बात पर चर्चा की थी कि कितनी ज.मीन का आदान-प्रदान करना होगा.” उन्होंने कहा, ”भारत में, चूंकि हमारे सामने ढाई मोर्चों पर खतरा है, इसलिए जमीन पर मजबूती ही जीत की कुंजी बनी रहेगी.” सेना प्रमुख की यह टिप्पणी एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह के उस बयान के दो सप्ताह बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने एक बार फिर वायु सेना की शक्ति की ”प्रधानता” स्थापित कर दी है.
भारत के सैन्य संदर्भ में, चीन और पाकिस्तान से उत्पन्न चुनौतियों को दो मोर्चों के रूप में माना जाता है और आधे मोर्चे को आम तौर पर उग्रवाद और उग्रवाद से उत्पन्न आंतरिक खतरों के रूप में संर्दिभत किया जाता है. सेना प्रमुख ने युद्ध की बदलती प्रकृति और भारतीय सेना द्वारा नयी एवं उभरती प्रौद्योगिकियों को शामिल करने के संदर्भ में परिवर्तनकारी बदलावों पर भी विस्तार से बात की. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का ज.क्रि करते हुए सेना प्रमुख ने कहा कि यह युद्ध की घोषणा के बिना ही भारत के सैनिकों, कमांडरों और अन्य हितधारकों के तालमेल और योगदान का एक बेहतरीन उदाहरण था.
सेना प्रमुख ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के महत्व पर भी जोर देते हुए कहा, ”अगर यह भारत में निर्मित उपकरण है, तो पैसे की कोई समस्या नहीं है.” हालांकि, जनरल द्विवेदी ने अपनी टिप्पणी को स्पष्ट करते हुए कहा कि उद्योग को निश्चित समय सीमा में निर्दष्टि गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए तैयार रहना होगा.
उन्होंने सैन्य उपकरणों में गुणवत्ता के महत्व पर ज.ोर देते हुए कहा, ”अगर युद्ध जीतने वाले कारक की बात आती है, तो यह बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि युद्ध में कोई उपविजेता नहीं है. उपविजेता न होने का मतलब है कि एक मानक स्थापित किया जाना चाहिए, और उससे नीचे का मानक स्वीकार्य नहीं है.” सेना प्रमुख ने कहा कि हर साल रक्षा खर्च में 10 प्रतिशत की वृद्धि के साथ, अल्पकालिक आवश्यकताओं से परे अत्याधुनिक समाधान प्राप्त करने के लिए एक ‘आत्मनिर्भर’ प्रणाली को प्रोत्साहित और करने के वास्ते पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं.
रक्षा विकास और उत्पादन में उद्योग द्वारा निवेश की आवश्यकता के बारे में बात करते हुए, जनरल द्विवेदी ने कहा कि सेना ने खरीद में पारर्दिशता सुनिश्चित करने का प्रयास किया है. सेना प्रमुख ने कहा कि शुरुआत में उद्योग द्वारा प्रदान की जाने वाली हर चीज. का उपयोग किया जाएगा, और जैसे-जैसे उद्योग आपूर्ति बढ.ाएगा, वह अपनी खरीद बढ.ाएगा. हालांकि, उन्होंने ज.ोर देकर कहा कि जैसे-जैसे दुश्मन की तकनीकी प्रगति के जवाब में सेना की ज.रूरतें बदलती रहेंगी, लक्ष्य बदलते रहेंगे. उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए, सेना जिन मिसाइलों, ड्रोन और गोला-बारूद पर विचार कर रही है, उनमें से अधिकांश 100-150 किलोमीटर दूर तक मार करने वाले हैं, लेकिन भविष्य में, वह 750 किलोमीटर या उससे भी अधिक दूरी तक मार करने वाले हथियार चाहेगी.


