निर्वाचन आयोग को राहुल गांधी के आरोपों की जांच का आदेश देना चाहिए था: कुरैशी

vikasparakh
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नयी दिल्ली. पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने ”वोट चोरी” के आरोपों पर निर्वाचन आयोग की प्रतिक्रिया को लेकर रविवार को उस पर निशाना साधा और कहा कि आयोग को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के लिए ”आपत्तिजनक और अपमानजनक” भाषा का इस्तेमाल करने की बजाय उनके आरोपों की जांच का आदेश देना चाहिए था.

कुरैशी ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि आरोप लगाते समय गांधी की ओर से इस्तेमाल किए गए अधिकांश शब्द, जैसे कि एक “हाइड्रोजन बम” आदि “राजनीतिक बयानबाजी” थी. कुरैशी ने इस बात पर जोर दिया कि गांधी ने जो शिकायतें रखीं, उनकी विस्तार से जांच की जानी चाहिए. पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त कुरैशी ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तरीके को लेकर आयोग की आलोचना की और कहा कि यह न केवल “भानुमति का पिटारा खोलना” है, बल्कि निर्वाचन आयोग ने “मधुमक्खी के छत्ते” में हाथ डाल दिया है, जिससे उसे नुकसान होगा.

उन्होंने जगरनॉट बुक्स द्वारा प्रकाशित अपनी नयी पुस्तक ‘डेमोक्रेसीज हार्टलैंड’ के विमोचन से पहले ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “आपको पता है कि मैं जब भी निर्वाचन आयोग की कोई आलोचना सुनता हूं तो मैं न केवल भारत के नागरिक के रूप में बहुत चिंतित और आहत महसूस करता हूं, बल्कि ऐसा इसलिए भी महसूस करता हूं क्योंकि मैं स्वयं मुख्य निर्वाचन आयुक्त रह चुका हूं और मैंने भी उस संस्था में थोड़ा योगदान दिया है.” साल 2010 से 2012 के बीच मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) रहे कुरैशी ने कहा, “जब मैं देखता हूं कि उस संस्था पर हमला हो रहा है या उसे किसी भी तरह से कमजोर किया जा रहा है, तो मुझे चिंता होती है. निर्वाचन आयोग को भी आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और चिंतित होना चाहिए. यह उन पर निर्भर है कि वे उन सभी ताकतों और दबावों का सामना करें जो उनके फैसलों को प्रभावित कर रहे हैं.” उन्होंने कहा, “उन्हें लोगों का विश्वास जीतना होगा – आपको विपक्षी दलों का विश्वास जीतने की जरूरत है. मैंने हमेशा विपक्षी दलों को प्राथमिकता दी है क्योंकि वे कमजोर होते हैं.” कुरैशी ने कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी को विपक्ष की तरह विशेष देखभाल की जरूरत नहीं होती क्योंकि वह सत्ता में होती है जबकि विपक्ष सत्ता में नहीं होता.

उन्होंने कहा, “इसलिए (जब मैं मुख्य निर्वाचन आयुक्त था) मेरे स्टाफ को आम तौर पर निर्देश होता था कि यदि वे (विपक्षी दल) मिलने का समय चाहते हैं, तो दरवाजे खुले रखें और उन्हें तुरंत समय दें, उनकी बात सुनें, उनसे बात करें, यदि वे कोई छोटी-मोटी मदद चाहते हैं, तो उनकी करें, बशर्ते कि इससे किसी और को नुकसान न हो.” उन्होंने कहा कि अब विपक्ष को बार-बार उच्चतम न्यायालय जाना पड़ता है और वास्तव में 23 दलों को कहना पड़ा है कि उन्हें मुलाकात का समय नहीं मिल रहा और कोई उनकी बात नहीं सुन रहा.
कुरैशी ने कहा कि आयोग को गांधी को शपथपत्र दाखिल करने के लिए कहने के बजाय उनके आरोपों की जांच करवानी चाहिए थी.

कुरैशी ने कहा, “राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष हैं, इसलिए निर्वाचन आयोग को उनके लिए उस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था जैसा उसने किया. मुझे लगता है कि यह वह निर्वाचन आयोग नहीं है, जिसे हम जानते हैं. आखिरकार, वह नेता प्रतिपक्ष हैं, वह कोई आम आदमी नहीं हैं. वह लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वह लाखों लोगों की राय व्यक्त कर रहे हैं और उनसे यह कहना कि, ‘शपथपत्र दीजिए, वरना हम यह करेंगे, वह करेंगे’, उसका (आयोग का) व्यवहार आपत्तिजनक व अपमानजनक, दोनों है.” उन्होंने कहा, “मैंने अक्सर कहा है कि मान लीजिए कि वे (विपक्ष) पलटकर कहते हैं कि ‘ठीक है, आप एक नयी मतदाता सूची पेश कर रहे हैं, एक शपथपत्र दीजिए कि इसमें कोई गलती नहीं है. और अगर कोई गलती हुई तो आप पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाएगा.’ क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं?” कुरैशी ने कहा कि आयोग को आरोपों की जांच का आदेश देना चाहिए था. उन्होंने कहा कि सिर्फ नेता प्रतिपक्ष ही नहीं, बल्कि अगर किसी ने भी शिकायत की है तो सामान्य प्रक्रिया यह है कि तुरंत जांच का आदेश दिया जाए.

उन्होंने कहा, “हमें (निर्वाचन आयोग को) न केवल निष्पक्ष होना चाहिए, बल्कि निष्पक्ष दिखना भी चाहिए. जांच से तथ्य सामने आते हैं. इसलिए, आयोग ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दी, उसके बजाय जांच कराना सही रहता और उन्होंने एक अवसर गंवा दिया.” कुरैशी की यह टिप्पणी ऐसे समय आयी है जब मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने पिछले महीने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि गांधी को मतदाता सूची में अनियमितताओं के अपने आरोपों के बारे में सात दिन में शपथपत्र दाखिल करना चाहिए, अन्यथा उनके ‘वोट चोरी’ के दावे निराधार और अमान्य हो जाएंगे.

गांधी ने इससे पहले एक संवाददाता सम्मेलन में एक प्रस्तुति के जरिए 2024 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े का हवाला देते हुए दावा किया था कि कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में पांच तरह की हेराफेरी करके एक लाख से अधिक वोट “चुराए” गए. उन्होंने अन्य राज्यों में भी इसी तरह की अनियमितताओं का आरोप लगाया. गांधी ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ बिहार में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ भी निकाली, जिसमें उन्होंने ”वोट चोरी” के लिए भाजपा और आयोग के बीच मिलीभगत का आरोप लगाया.

गांधी के इस दावे के बारे में पूछे जाने पर कि वह जल्द ही “वोट चोरी” पर खुलासे का “हाइड्रोजन बम” लेकर आएंगे, कुरैशी ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष ने इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया है और इसमें से अधिकांश “राजनीतिक बयानबाजी” है जिसे इसी रूप में लिया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, “लेकिन साथ ही, यदि कोई गंभीर मुद्दा है, गंभीर शिकायतें हैं जो वह उठा रहे हैं, तो उन मुद्दों-शिकायतों की न केवल विपक्ष के नेता की संतुष्टि के लिए बल्कि पूरे देश की संतुष्टि के लिए विस्तार से जांच की जानी चाहिए.” यह पूछे जाने पर कि क्या चुनावी प्रक्रिया पर लोगों का भरोसा डगमगा गया है तो कुरैशी ने हां में जवाब दिया. मतदाता सूची में शामिल होने के लिए उपलब्ध कराए जा सकने वाले दस्तावेजों की सूची से मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) को बाहर रखने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाते हुए कुरैशी ने कहा कि ईपीआईसी स्वयं निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किया जाता है और इसे मान्यता नहीं देने के बहुत गंभीर प्रभाव होंगे.

नेपाल में घटनाक्रम अराजकता का नहीं, बल्कि ‘जीवंत लोकतंत्र’ का संकेत: पूर्व सीईसी कुरैशी

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा है कि नेपाल में घटनाक्रम अराजकता का नहीं, बल्कि ”जीवंत लोकतंत्र” का संकेत है. उन्होंने कहा कि सरकारों को सोशल मीडिया को विनियमित करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि यह हर किसी के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है.

कुरैशी ने यह भी कहा कि भारत को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) क्षेत्र में उन लोकतंत्रों का हाथ थामने के लिए नेतृत्व करना होगा ”जो अभी भी संघर्ष कर रहे हैं” तथा उन्हें सहायता प्रदान करनी होगी, लेकिन ऐसा उसे एक ”बड़े भाई” (मार्गदर्शक) के रूप में करना होगा, न कि ”बिग ब्रदर” (दबदबा दिखाने वाला) के रूप में. अपनी पुस्तक ‘डेमोक्रेसी हार्टलैंड’ के विमोचन से पहले ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कुरैशी ने कहा कि वह नेपाल में हो रहे घटनाक्रम को लोकतंत्र की जड़ें जमने के संकेत के रूप में देखते हैं, क्योंकि वहां आंदोलन ”लोकतांत्रिक” था और कुछ ही दिनों में चीजें सुलझ गईं. उन्होंने पुस्तक में दक्षिण एशिया के देशों की लोकतांत्रिक यात्रा का वर्णन किया है.

कुरैशी ने कहा, ”यह एक जीवंत और गतिशील लोकतंत्र का प्रतीक है, अराजकता का नहीं. निश्चित रूप से भ्रष्टाचार था और राजनीतिक अस्थिरता थी. पिछले पांच वर्षों में पांच प्रधानमंत्री और 70 वर्षों में सात संविधान बने हैं. इसलिए, राजनीतिक अस्थिरता नेपाल की पहचान रही है, लेकिन साथ ही उनका नवीनतम 2015 का संविधान बहुत अच्छा है, क्योंकि इसमें महिलाओं को बहुत अधिक शक्ति दी गई है.” उन्होंने कहा, ”मेरे लिए, छात्रों का सड़कों पर उतरना लोकतंत्र है, अराजकता नहीं. वे और अधिक लोकतंत्र चाहते हैं, सच्चा और ईमानदार लोकतंत्र.” उनकी यह टिप्पणी नेपाल में ‘जेन जेड’ समूह के व्यापक विरोध प्रदर्शन के बीच, प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली द्वारा इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद आई है. प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगों में भ्रष्टाचार पर नकेल कसना, पक्षपात खत्म करना और सोशल मीडिया साइटों पर प्रतिबंध हटाना शामिल था. ‘जेन जेड’ वे युवा हैं, जिनका जन्म 1997 से 2012 के बीच हुआ है.

उन्होंने कहा, ”शायद यह कदम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की स्वतंत्रता के खिलाफ था… यह महसूस किए बिना कि वे नेपाल में हर किसी के जीवन का हिस्सा बन गए हैं.” कुरैशी ने बताया कि 10 प्रतिशत नेपाली विदेश में रहते हैं और उनका परिवार से संपर्क केवल सोशल मीडिया के माध्यम से ही होता है और इसी कारण कई लोग सड़कों पर उतर आए.

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) ने कहा कि भारत और अन्य सभी के लिए सबक यह है कि युवाओं को हल्के में न लें, क्योंकि एक बार वे आक्रोशित हो जाएं तो उन्हें रोक पाना बहुत मुश्किल होता है और स्वतंत्रता के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए तथा सोशल मीडिया को विनियमित करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

जगरनॉट बुक्स द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक में, कुरैशी भारत में लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति की भी आलोचना करते नजर आते हैं.
सोमवार को जारी होने वाली इस पुस्तक में उन्होंने कहा है, ”मीडिया पर नियंत्रण, चुनावी वित्तपोषण में दबदबा और विपक्ष के दमन के जरिए, तुर्की या रूस जैसे अनुदार लोकतंत्र के मॉडल की ओर भारत बढ़ रहा है.” पुस्तक में किये गए इस आकलन के बारे में पूछे जाने पर कुरैशी ने कहा, ”यह तथ्य कि सरकार अधिनायकवाद, बहुसंख्यकवाद के संकेत दे रही है, यह सर्वविदित है, हर कोई इसके बारे में बात कर रहा है. जिस तरह से वे किसी भी असहमतिपूर्ण आवाज पर सख्ती से पेश आते हैं, जिस तरह से मीडिया को नियंत्रित किया गया है – उसे या तो खरीद लिया गया है या डराकर अधीनता में ले लिया गया है.”

उन्होंने कहा, ”अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शायद ही कहीं बची है. जो भी मीडिया संस्थान अभी भी खड़ा है, उन पर छापे मारे जा रहे हैं और वे जांच के दायरे में हैं. ये लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. यह केवल इसलिए संभव है, क्योंकि भारत में लोकतंत्र ने जड़ें जमा ली हैं, और विश्व स्तर पर लोकतंत्र ने लचीलापन दिखाया है, कि हम मौजूदा हालात का सामना कर पा रहे हैं. आशा है कि वह जीवंत लोकतंत्र, जिसके लिए भारत जाना जाता है, फिर से बहाल होगा.” हालांकि, उन्होंने दावा किया कि इस समय भारत ”निस्संदेह एक अनुदार लोकतंत्र” है.

कुरैशी ने कहा, ”हमें भ्रम में नहीं जीना चाहिए और अपनी झूठी तारीफ नहीं करनी चाहिए. हमें ईमानदारी से आत्मावलोकन करना चाहिए. हमें अपनी ताकत पहचाननी चाहिए और हमारे पास यह बहुत है.” उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 70 वर्षों में तीन तख्तापलट के साथ पाकिस्तान ने लोकतांत्रिक मोर्चे पर इस क्षेत्र में सबसे खराब प्रदर्शन किया है.

उन्होंने कहा, ”मुझे खुशी है कि नेपाल के सेना प्रमुख राजनीति से दूर रहे हैं, अन्यथा तख्तापलट का मौका मिल जाता. हालांकि, सरकार गिर गई थी और वह हस्तक्षेप कर सत्ता संभाल सकते थे. नेपाल में लोकतंत्र अभी भी है. लेकिन पाकिस्तान में यह धराशायी हो गया है.” बांग्लादेश के बारे में बात करते हुए, कुरैशी ने कहा कि उस देश का भी दो सैन्य तख्तापलट के साथ एक उतार-चढ़ाव भरा रिकॉर्ड रहा है.

उन्होंने कहा, ”दिलचस्प बात यह है कि पिछले कुछ दशकों में दो महिलाओं ने राजनीतिक परिदृश्य पर अपना दबदबा बनाया है और शेख हसीना कुछ अधिक ही तानाशाह हो गईं, इसलिए यही सबक है. अगर आप तानाशाह बन जाते हैं, तो जनता देर-सवेर जवाब देगी.” उन्होंने याद करते हुए कहा, ”वहां चुनावों से महीनों पहले, मैं शेख हसीना से मिला था और उन्होंने जिक्र किया था कि ”अमेरिका मेरे पीछे पड़ा है और वे चाहते हैं कि मैं अपनी ही विरोधी खालिदा जिया से दोस्ती करूं.” कुरैशी ने कहा, ”उन्होंने (हसीना) कहा था कि जिस दिन मैं (जो) बाइडन और (डोनाल्ड) ट्रंप को हाथ पकड़े देखूंगी, मैं भी उन्हें गले लगा लूंगी.”

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