प्रयागराज. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि लंबे समय तक आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए रखने के बाद शादी से इनकार से यह संबंध संज्ञेय अपराध नहीं बनता. एक पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा, “हमारे विचार से, यदि दो स्वस्थ दिमाग के वयस्क कई वर्षों तक साथ रहते हैं तो यह संभावना पैदा होगी कि उन्होंने इस रिश्ते के परिणामों को पूरी तरह से जानते हुए स्वेच्छा से संबंध बनाए हैं.”
अदालत ने कहा, “इसलिए यह आरोप कि शादी के वादे के कारण इस तरह के संबंध बनाए गए हैं, स्वीकर करने योग्य नहीं है, खासकर तब जब ऐसा कोई आरोप नहीं है कि यदि शादी का वादा नहीं किया गया होता तो यह संबंध नहीं बनाया गया होता.” प्रतिवादी के वकील सुनील चौधरी ने दलील दी कि याचिकाकर्ता के बयान के मुताबिक, यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता और उनके मुवक्किल के बीच संबंध था और शुरुआत में वे शादी के लिए भी तैयार थे. हालांकि, कुछ कारणों से उनके मुवक्किल ने शादी करने से मना कर दिया जिसके बाद महिला ने उपजिलाधिकारी (एसडीएम) और विभाग के अन्य अधिकारियों से शिकायत की.
उन्होंने कहा, “बाद में दोनों पक्षों ने विभागीय अधिकारियों के समक्ष अपने विवाद का निपटान भी कर लिया. इसलिए उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता.” संबंधित पक्षों को सुनने और रिकॉर्ड पर गौर करने के बाद अदालत ने आठ सितंबर को दिए अपने निर्णय में कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी (दोनों तहसील के कर्मचारी) के बीच चार वर्षों तक संबंध रहा और इस तथ्य से तहसील के सभी कर्मचारी और अधिकारी वाकिफ थे.
अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ता से शादी से इनकार करने पर एसडीएम और पुलिस से इसकी शिकायत की गई. हालांकि, इस शिकायत की एसडीएम और पुलिस अधिकारियों द्वारा जांच के दौरान, दोनों पक्षों ने अपने विवाद निपटा लिए और इस मामले को आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय किया.” उल्लेखनीय है कि महोबा जिले के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एससी/एसटी कानून) द्वारा 17 अगस्त 2024 को पारित आदेश को रद्द करने के अनुरोध के साथ महिला ने यह पुनरीक्षण याचिका दायर की थी. निचली अदालत ने महिला की शिकायत खारिज कर दी थी.


