नयी दिल्ली. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का यह कहना गलत है कि मध्य प्रदेश की धीरौली कोयला खनन परियोजना संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत संरक्षित क्षेत्र में नहीं आती है. उन्होंने यह दावा भी किया कि नौ अगस्त, 2023 को तत्कालीन कोयला मंत्री प्र”ाद जोशी ने स्पष्ट किया था कि यह परियोजना पांचवीं अनुसूची के तहत संरक्षित क्षेत्र में आती है.
रमेश ने बीते 12 सितंबर को आरोप लगाया था कि मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में अदाणी समूह की धीरौली कोयला खदान परियोजना में वन अधिकार अधिनियम, 2006 (एफआरए) और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) का उल्लंघन किया गया है. हालांकि मध्यप्रदेश सरकार ने इस आरोप को खारिज कर दिया.
पूर्व पर्यावरण मंत्री ने बुधवार को ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ”मैंने 12 सितंबर को ‘मोदानी’ की धीरौली कोयला खनन परियोजना की मंजूरी प्रक्रिया में हुई भारी गड़बड़ियों का मुद्दा उठाया था. इस पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने लगभग तुरंत प्रतिक्रिया दी और दावा किया कि खनन क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची में संरक्षित क्षेत्र में नहीं आता है तथा वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत आवश्यक कानूनी प्रक्रिया विधिवत पूरी कर ली गई है.”
उनका कहना है, ”पहला दावा झूठा है. नौ अगस्त, 2023 को तत्कालीन कोयला मंत्री ने लोकसभा में स्पष्ट और ठोस रूप से उतर दिया था कि धीरौली कोयला खनन परियोजना वास्तव में संविधान की पांचवीं अनुसूची में संरक्षित क्षेत्र में आती है.” रमेश ने कहा कि जहां तक दूसरे दावे का सवाल है, तो वन अधिकार अधिनियम, 2006 में केवल व्यक्तिगत वन अधिकार ही नहीं, बल्कि सामुदायिक वन संसाधन अधिकार और विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूहों के आवास अधिकार भी शामिल हैं.
कांग्रेस नेता ने कहा, ”धीरौली कोयला खदान के तहत लगभग 3,500 एकड़ वनभूमि पांच गांवों से डायवर्ट की जानी है, और इन वनों से सटे कम से कम तीन अन्य गांवों के भी इस पर निर्भर होने की संभावना है. इन आठ गांवों में सभी तीन प्रकार के जनजातीय अधिकारों का पहले निपटारा किया जाना आवश्यक है.” रमेश ने कहा कि 31 मार्च, 2022 को जिला कलेक्टर ने प्रमाणित किया था कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत अधिकारों की पहचान और निपटान की पूरी प्रक्रिया पूरी कर ली गई है और विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूहों के अधिकार सुरक्षित किए गए हैं. उन्होंने दावा किया, ”लेकिन, मध्य प्रदेश सरकार की अपनी जानकारी के अनुसार, सिंगरौली जिले में, जहां ये आठ गांव स्थित हैं, अब तक न तो कोई सामुदायिक अधिकार और न ही कोई आवास अधिकार मान्यता प्राप्त हुए हैं.”


