सरकार ने वक्फ पर न्यायालय के आदेश का स्वागत किया, विपक्ष ने कहा- ‘विकृत मंशा’ हुई नाकाम

vikasparakh
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नयी दिल्ली/हैदराबाद/लखनऊ. विपक्षी दलों ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश का स्वागत करते हुए सोमवार को कहा कि इसने संशोधित कानून के पीछे छिपी ‘विकृति मंशा’ को काफी हद तक नाकाम कर दिया है. सरकार ने भी फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है तथा अधिनियम के प्रावधान पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए लाभकारी हैं.

कई मुस्लिम संगठनों ने न्यायालय के आदेश का स्वागत किया. हालांकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने निराशा जताई और कहा कि व्यापक संवैधानिक चिंताओं का समाधान नहीं करने के कारण कई प्रावधानों का दुरुपयोग होगा जबकि इस पूरे कानून को ही निरस्त करने की जरूरत है. उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों पर रोक लगा दी जिनमें यह प्रावधान भी शामिल है कि पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे लोग ही वक्फ बना सकते हैं. हालांकि, शीर्ष अदालत ने पूरे कानून पर स्थगन से इनकार कर दिया.

न्यायालय ने वक्फ संपत्तियों की स्थिति पर निर्णय करने के लिए जिलाधिकारी को दी गई शक्तियों पर भी रोक लगा दी और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम भागीदारी के विवादास्पद मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 20 में से चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए और राज्य वक्फ बोर्डों में 11 में से तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए.
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है.
उन्होंने कहा कि अधिनियम के प्रावधान पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए लाभकारी हैं.

मंत्री ने कहा, ”वक्फ बोर्ड के माध्यम से संपत्ति पर कब्जा करने सहित होने वाले दुरुपयोग पर अब इस नए कानून के जरिए रोक लगेगी. उच्चतम न्यायालय पूरे मामले से भलीभांति अवगत था.” वक्फ विधेयक पर विचार करने वाली संयुक्त संसदीय समिति के प्रमुख रहे भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले से संसद द्वारा पारित कानून पर मुहर लगा दिया है.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ”माननीय उच्चतम न्यायालय ने आज अपने अंतरिम आदेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के अपने संकल्प की पुष्टि की है. यही वह मुद्दा है जिसके लिए विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट खड़ा हुआ है.” उन्होंने दावा किया कि भाजपा ने एक विभाजनकारी कानून को मनमाने तरीके से लागू करने की कोशिश की थी जिसका उद्देश्य केवल सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काना और उन मुद्दों को फिर से खोलना था जिन्हें भारत ने लंबे समय से सुलझा लिया था.” कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ”वक्फ. (संशोधन) अधिनियम 2025 पर उच्चतम न्यायालय का आज का आदेश केवल उन दलों की जीत नहीं है ,जिन्होंने संसद में इस मनमाने क.ानून का विरोध किया था, बल्कि उन सभी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सदस्यों की भी जीत है जिन्होंने विस्तृत असहमति नोट प्रस्तुत किए थे. उन नोट को तब नज.रअंदाज. कर दिया गया था लेकिन अब वे सही साबित हुए हैं.” उन्होंने कहा कि यह आदेश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मूल कानून के पीछे छिपी विकृत मंशा को काफी हद तक निष्फल करता है.

कांग्रेस नेता ने कहा, ”विपक्षी दलों की ओर से पेश वकीलों ने दलील दी थी कि यह कानून ऐसी व्यवस्था बनाएगा, जिसमें कोई भी व्यक्ति कलेक्टर के समक्ष संपत्ति की स्थिति को चुनौती दे सकेगा और मुकदमेबाज.ी के दौरान संपत्ति की स्थिति अनिश्चित बनी रहेगी. इसके अतिरिक्त, केवल वही व्यक्ति वक्फ. में दान कर सकेगा जो पांच वर्षों से ‘मुसलमान’ होने का सबूत दे सकेगा.” रमेश ने दावा किया कि इन धाराओं के पीछे की मंशा हमेशा स्पष्ट थी कि मतदाताओं को भड़काए रखना और ऐसा प्रशासनिक ढांचा बनाना जो धार्मिक विवादों को हवा देने वालों को संतुष्ट कर सके.

कांग्रेस नेता ने कहा, ”हम न्याय, समानता और बंधुता के संवैधानिक मूल्यों की जीत के रूप में इस आदेश का स्वागत करते हैं.” एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ”मेरा मानना ??है कि यह सिफ.र् एक अंतरिम आदेश है, हम चाहते हैं कि उच्चतम न्यायालय इस पर अंतिम फ.ैसला दे और सुनवाई शुरू हो. इस क.ानून से वक़्फ. संपत्तियों की सुरक्षा नहीं होगी बल्कि अतिक्रमणकारियों को फायदा होगा और वक़्फ. संपत्तियों पर कोई विकास नहीं होगा.” उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय को इस पर जल्द अंतिम फैसला सुनाना चाहिए.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी आदेश का स्वागत किया. माकपा महासचिव एम ए बेबी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ”माननीय उच्चतम न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है, जिसमें वह प्रावधान भी शामिल है जिसके अनुसार किसी विवादित संपत्ति को तब तक वक्फ नहीं माना जाएगा जब तक कि कार्यपालिका जांच के बाद इसकी अनुमति ना दे.” उन्होंने आगे कहा, ”माकपा आंशिक रूप से रोक लगाने का स्वागत करती है.” तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक नेता एम के स्टालिन ने उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह ”भाजपा सरकार द्वारा किए गए असंवैधानिक और अवैध संशोधनों को रद्द करने” की दिशा में एक बड़ा कदम है.

कई प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने भी इस अंतरिम आदेश का स्वागत किया. हालांकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने निराशा जताई. शीर्ष अदालत में इस विवादित अधिनियम को चुनौती देने वाली जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि उनका संगठन इस ‘काले कानून’ के ख.त्म होने तक ‘अपनी क.ानूनी और लोकतांत्रिक जद्दोजहद को जारी रखेगा.ह्व वहीं, ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि उसे अदालतों पर पूरा भरोसा है और इंसाफ मिलने की उम्मीद है. ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव यासूब अब्बास ने कहा, “हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं. हमें अपनी अदालतों पर पूरा भरोसा है और हमें न्याय मिलने की पूरी उम्मीद है.”

उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय जल्द ही वक्फ कानून पर अंतिम फैसला सुनाएगा: ओवैसी

ऑल इंडिया मज्लिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर केवल एक अंतरिम आदेश दिया है और उम्मीद है कि शीर्ष अदालत जल्द ही पूरे कानून पर अपना फैसला सुनाएगी. ओवैसी ने यहां पत्रकारों से कहा, “इस अधिनियम पर अंतिम निर्णय अभी नहीं आया है. यह केवल एक अंतरिम आदेश है. उम्मीद है कि वह (शीर्ष अदालत) इस अधिनियम के पूरे मुद्दे पर जल्द ही फैसला सुनाएगी.”

वक्फ (संशोधन) कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने पर मुस्लिम संगठनों की मिली-जुली प्रतिक्रिया

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के कुछ अहम प्रावधानों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा अंतरिम रोक लगाए जाने पर मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एएम) और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) समेत कई संगठनों तथा धर्मगुरुओं ने सोमवार को मिली-जुली प्रतिक्रिया दी.

शीर्ष अदालत में इस विवादित अधिनियम को चुनौती देने वाली जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि उनका संगठन इस ”काले कानून” के ख.त्म होने तक ”अपनी क.ानूनी और लोकतांत्रिक जद्दोजहद को जारी रखेगा.” वहीं, ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि उसे अदालतों पर पूरा भरोसा है और इंसाफ मिलने की उम्मीद है.

शीर्ष अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए, एआईएमपीएलबी के कार्यकारी सदस्य खालिद रशीद फरंगी महली ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि मुसलमान और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर रोक चाहता था, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है, जो एक स्वागतयोग्य कदम है.

उन्होंने कहा, “हमें इससे काफी राहत मिली है. हमें उम्मीद है कि जब अंतिम फैसला आएगा, तो हमें पूरी राहत मिलेगी.” मदनी ने ‘एक्स’ पर कहा, “जमीयत उलेमा-ए-हिंद वक़्फ. कानून की तीन अहम विवादित धाराओं पर मिली अंतरिम राहत के फैसले का स्वागत करती है. जमीयत इस काले कानून के ख.त्म होने तक अपनी क.ानूनी और लोकतांत्रिक जद्दोजहद जारी रखेगी.” उन्होंने कहा, “हमें यक.ीन है कि उच्चतम न्यायालय इस काले कानून को समाप्त करके हमें पूर्ण संवैधानिक न्याय देगा, इंशा अल्लाह.” ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव यासूब अब्बास ने कहा, ”हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं. हमें अपनी अदालतों पर पूरा भरोसा है और हमें न्याय मिलने की पूरी उम्मीद है.”

केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित करने के शीर्ष अदालत के फैसले पर खालिद रशीद ने कहा कि अदालत ने बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति मुस्लिम समुदाय से ही करने का निर्देश दिया है जो राहत की बात है, लेकिन “गैर-मुस्लिम सदस्यों का मुद्दा अब भी बना हुआ है.” रशीद ने कहा कि अन्य धर्मों और समुदायों के ट्रस्टों तथा धार्मिक संस्थाओं में यह प्रावधान है कि केवल उसी धर्म का व्यक्ति ही इसका सदस्य बन सकता है और यही कानून वक्फ अधिनियम में भी था, लेकिन संशोधिन कानून में इस प्रावधान को हटा दिया गया.

इस मुद्दे पर अब्बास ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की सदस्य के रूप में उपस्थिति के बारे में “हम न्यायालय से इस पर पुर्निवचार करने का अनुरोध करते हैं.” इस बीच, उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण, मुस्लिम वक्फ और हज राज्य मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी ने शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत किया.

उन्होंने “पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”मोदी सरकार अल्पसंख्यक मुसलमानों और पसमांदा समुदाय के उत्थान और विकास के लिए ईमानदारी एवं गंभीरता से काम कर रही है. उच्चतम न्यायालय के फैसले के आलोक में, हमारी सरकार मुसलमानों के लिए हरसंभव प्रयास करेगी.” उन्होंने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम मुसलमानों के विकास के नए रास्ते खोलेगा.

उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है.
मत्स्य मंत्री निषाद ने कहा, ”’हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं. सबको करना भी चाहिए. यह उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो कहते थे कि मोदी जी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) की नीति और नीयत खराब है.” उन्होंने कहा, ”सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ही कहती है कि मुसलमान कुछ पार्टियों के गिरवी हैं. वक्फ बोर्ड के नए कानून से मुस्लिम समाज के वंचित वर्ग का विकास होगा. वक्फ संपत्ति का सामाजिक विकास के लिए बेहतर उपयोग होगा.” इस बीच, उत्तर प्रदेश के पूर्व अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मोहसिन रजा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं. याचिकाकर्ता कभी नहीं चाहते थे कि यह कानून (वक्फ संशोधन अधिनियम) लागू हो. यह याचिकाकर्ताओं की हार है. जहां तक वक्फ बोर्ड के तीन सदस्यों के गैर-मुस्लिम होने का सवाल है तो यह याद रखना चाहिये कि यह बोर्ड एक संवैधानिक संस्था है.” उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा बनाए गए तीन तलाक विरोधी कानून, अनुच्छेद 370 को हटाना और वक्फ (संशोधन) अधिनियम सभी को न्यायालय ने सही माना है.

संभल से समाजवादी पार्टी के विधायक इकबाल महमूद ने वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए संवाददाताओं से कहा, ”मैंने अभी तक इसे (फैसले को) पूरी तरह से नहीं पढ़ा है. मैंने समाचार चैनलों पर जो सुना है उसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि मुसलमानों ने हमेशा न्यायालय के आदेशों का पालन किया है.” उन्होंने कहा, ”हालांकि कुछ बातें हमारी समझ से परे हैं, जैसे कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य की मौजूदगी. क्या हम राम मंदिर ट्रस्ट में किसी मुस्लिम को सदस्य बना सकते हैं? किसी को भी सदस्य बनाना उनका अधिकार है.” वहीं, मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने शीर्ष अदालत के फैसले को ”बहुत अच्छा” और ”संतुलित” बताया.

रज़वी ने ‘पीटीआई वीडियो’ से कहा ”मैं फैसले का स्वागत करता हूं. इससे उम्मीद जगी है कि वक्फ की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा हटेगा और उस ज़मीन पर स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, मस्जिद, मदरसे और अनाथालय बनाए जाएंगे.” उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों पर रोक लगा दी जिनमें यह प्रावधान भी शामिल है कि पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ के लिए संपत्ति दे सकता है. हालांकि, शीर्ष अदालत ने पूरे कानून पर स्थगन से इनकार कर दिया.

प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में कहा, ”हमने कहा है कि हमेशा पूर्व धारणा कानून की संवैधानिकता के पक्ष में होती है और हस्तक्षेप केवल दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में किया जा सकता है.” न्यायालय ने वक्फ संपत्तियों की स्थिति पर निर्णय करने के लिए जिलाधिकारी को दी गई शक्तियों पर भी रोक लगा दी और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम भागीदारी के विवादास्पद मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 20 में से चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हों, और राज्य वक्फ बोर्डों में 11 में से तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हों.

पसमांदा मुस्लिम संगठन ने वक्फ पर शीर्ष अदालत के फैसले को संतुलित बताया

पसमांदा मुसलमानों के एक संगठन ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कई प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगाने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह एक “संतुलित निर्णय” है जो संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा करता है, इंसाफ सुनिश्चित करता है और वक्फ संस्थाओं की शुचिता बनाए रखता है.

भारत में मुस्लिम आबादी के भीतर पसमांदा मुसलमानों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा समुदाय माना जाता है.
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष शारिक अदीब अंसारी ने कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के फैसले का तहे दिल से स्वागत करते हैं और उनका मानना ?है कि यह फैसला एक संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो संवैधानिक मूल्यों और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है, साथ ही न्याय और निष्पक्ष शासन की भावना को भी कायम रखता है.
अंसारी ने कहा कि यह मुस्लिम समुदाय, खासकर पसमांदा मुसलमानों के लिए बहुत आवश्यक स्पष्टता प्रदान करता है, जिन्हें अक्सर संस्थागत प्रक्रियाओं में हाशिए पर रखा जाता है.

वक़्फ कानून आस्था के संरक्षण की गारंटी है: नकवी

पूर्व केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने सोमवार को कहा कि वक्फ कानून आस्था के संरक्षण की गारंटी और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन की प्रशासनिक व्यवस्था में ऐतिहासिक सुधार से संबंधित है. उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग ”जमीन की लूट” की छूट का कानूनी लाइसेंस चाहते हैं, उन्हें वक्फ सुधारों से झटका महसूस हो रहा है.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता नकवी ने संवाददाताओं से कहा, ”यह कानून संसद की जेपीसी और दोनों सदनों में चर्चा के बाद पारित हुआ. वक़्फ. सुधार वक़्त और वक़्फ. दोनों की ज़रूरत है. इस कानून पर चल रहे मंथन से अमृत ज़रूर निकलेगा.” उनका यह भी कहना था कि वक्फ कानून आस्था के संरक्षण की गारंटी और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन की प्रशासनिक व्यवस्था में ऐतिहासिक सुधार से संबंधित है.

नकवी ने कहा, ”वक़्फ संशोधन क.ानून, मुल्क का कानून है किसी मज़हब का नहीं. संसद का कानून था, और संसद ने ही इसमें सुधार किया. यह सुधार धार्मिक आस्था के संरक्षण, प्रशासनिक व्यवस्था के सुधार का है.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस ”समावेशी सुधार पर सांप्रदायिक प्रहार करने वाले ना मुल्क के हितैषी हैं न किसी मजहब के हितैषी हैं.”

न्यायालय ने जिन प्रावधानों पर रोक लगाई उनसे वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता कमजोर हुई थी: नासिर हुसैन

कांग्रेस महासचिव और वक्फ संबंधी संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य रहे सैयद नासिर हुसैन उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश का स्वागत करते हुए सोमवार को कहा कि न्यायालय ने जिन प्रावधानों पर रोक लगाई उनसे वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता कमजोर हुई थी और एक समुदाय के अधिकारों का हनन हुआ.

राज्यसभा सदस्य हुसैन ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ”मैं वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर अपने अंतरिम आदेश के लिए उच्चतम न्यायालय का आभार व्यक्त करता हूं. माननीय पीठ ने अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करने वाले संवैधानिक सुरक्षा उपायों की पुन? पुष्टि की है और सुधार एवं प्रतिनिधित्व के बीच संतुलन स्थापित किया है.” उनका कहना है, ”शुरू से ही, मैंने कांग्रेस पार्टी की ओर से सरकार को उन तीन धाराओं को शामिल करने के विरुद्ध बार-बार आगाह किया था जिन पर आज रोक लगा दी गई है.”

उन्होंने कहा, ”मैंने बताया था कि कलेक्टर को बेलगाम अधिकार देना, किसी व्यक्ति को 5 साल तक यह साबित करना होगा कि वह मुस्लिम है (अपनी संपत्ति को वक्फ घोषित करने की पूर्व शर्त के रूप में) और वक्फ बोर्ड में प्रतिनिधित्व को विकृत करना गलत तथा असंवैधानिक था.” हुसैन के अनुसार, इन प्रावधानों से वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता कमजोर हुई और समुदाय के अधिकारों का हनन हुआ, जो अंतत? भारतीय नागरिक हैं और जिनके संवैधानिक और मौलिक अधिकार अन्य लोगों के समान ही हैं.

उन्होंने कहा, ”’आज का फैसला हमारे इस रुख को पुष्ट करता है कि कोई भी सुधार पारदर्शी, परामर्शात्मक और भारतीय संविधान के प्रति निष्ठावान होना चाहिए.” हुसैन ने कहा, ”यह ध्यान में रखते हुए कि यह एक अंतरिम आदेश है, हम उन शेष धाराओं पर अपने तर्कों को विद्वान पीठ को समझाने के अपने प्रयास जारी रखेंगे जिन्हें चुनौती दी गई है.”

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