कोलकाता. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बृहस्पतिवार को कहा कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों में हालिया कटौती से राजस्व में होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र किसी तरह का मुआवजा देने पर विचार नहीं कर रहा है. उन्होंने कहा कि राजस्व संग्रह में कमी का बोझ केंद्र और राज्यों दोनों को समान रूप से उठाना होगा. उन्होंने कहा कि करों का बंटवारा होने के बाद इसका असर केंद्र पर राज्यों की तुलना में और भी ज्यादा होगा.
सीतारमण ने जीएसटी पर आयोजित चर्चा में कहा कि जीएसटी परिषद की बैठक में कई राज्यों, विशेषकर विपक्ष-शासित राज्यों ने दर कटौती के प्रस्ताव पर आशंका जताते हुए पूछा था कि यदि इससे राजस्व में गिरावट आती है तो उस कमी की भरपाई किस तरह होगी.
उन्होंने कहा, ”जीएसटी में केंद्र और राज्यों की हिस्सेदारी 50-50 प्रतिशत है. इसमें भी केंद्र के हिस्से का 41 प्रतिशत राज्यों को ही वापस चला जाता है. केंद्र के पास आखिर में केवल 23 प्रतिशत हिस्सा रह जाता है. ऐसे में राजस्व गिरावट का असर केंद्र पर भी उतना ही पड़ेगा जितना राज्यों पर. जीएसटी परिषद में दाता-ग्राही का कोई रिश्ता नहीं है.” जीएसटी परिषद की महीने की शुरुआत में हुई बैठक में कर दरों को चार के बजाय दो स्लैब में ही रखने का फैसला किया गया. अब सिर्फ पांच और 18 प्रतिशत की दर से कर लगेगा. हालांकि, विलासिता एवं अहितकर उत्पादों पर 40 प्रतिशत की एक विशेष दर रखी गई है.
वित्त मंत्री ने कहा कि अतीत में कई वस्तुओं के गलत वर्गीकरण और कर संरचना का लाभ उठाने से राजस्व का नुकसान हुआ.
उन्होंने कहा, ”पॉपकॉर्न जैसी वस्तुओं में नमकीन एवं मीठे संस्करणों पर अलग-अलग दरें थीं. नयी व्यवस्था से ऐसी खामियों को दूर किया गया है.” सीतारमण ने भरोसा जताया कि ‘नयी पीढ़ी के जीएसटी सुधार’ से दो लाख करोड़ रुपये अर्थव्यवस्था में जाएंगे, जिससे मांग बढ़ेगी और 140 करोड़ लोगों को फायदा होगा. जीएसटी दरों में कटौती 22 सितंबर से लागू होगी.
देश अभी एकल दर वाली GST प्रणाली के लिए तैयार नहीं: सीतारमण
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बृहस्पतिवार को कहा कि सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) स्लैब को युक्तिसंगत बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है लेकिन देश अभी एकल दर वाली जीएसटी प्रणाली के लिए तैयार नहीं है. हालांकि सीतारमण ने कहा कि भविष्य में एकल दर वाली जीएसटी प्रणाली की संभावना बनी हुई है.
सीतारमण ने यहां एक कार्यक्रम में कहा कि पांच, 12, 18 और 28 प्रतिशत की चार दरों वाली जीएसटी संरचना मनमाने ढंग से तय नहीं की गई थी, बल्कि यह विभिन्न राज्य-स्तरीय करों को उसके नजदीकी स्लैब में रखने की एक विस्तृत प्रक्रिया के जरिये तय की गई थी.
उन्होंने कहा, ”जब जीएसटी प्रणाली की समीक्षा की गई, तो एक जरूरत यह थी कि वे (जीएसटी परिषद के सदस्य) चार दरें नहीं चाहते थे. हालांकि इस सवाल का जवाब अभी नहीं मिला है कि कि क्या वे अभी एकल दर वाली स्थिति के लिए तैयार हैं. शायद भविष्य में ऐसा हो सकता है.” वित्त मंत्री ने मौजूदा कर सुधार प्रक्रिया को ‘नई पीढ़ी के जीएसटी सुधारों’ का हिस्सा बताया, जो खासकर गरीबों और मध्यम वर्ग के लिए प्रणाली को सरल और निष्पक्ष बनाने पर केंद्रित है.
इस अवसर पर सीतारमण ने यह भी कहा कि मौजूदा राजग सरकार और पिछली संप्रग सरकार के बीच कर हस्तांतरण की तुलना करने वाले दस्तावेज पश्चिम बंगाल में परियोजनाओं के विवरण के साथ जारी किए गए हैं. उन्होंने कहा कि जल्द ही अतिरिक्त दस्तावेज साझा किए जाएंगे, जिनमें आम उपयोग की उन वस्तुओं की सूची होगी जहां जीएसटी दरें कम की गई हैं.
उद्योग को निवेश करने, क्षमता विस्तार में संकोच नहीं करना चाहिए: सीतारमण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बृहस्पतिवार को कहा कि सरकार ने उद्योग जगत की अपेक्षाओं के अनुरूप नीतियां बनाई और अब समय आ गया है कि भारतीय उद्योग जगत और अधिक निवेश करे तथा क्षमता विस्तार करे. सीतारमण ने भारतीय गुणवत्ता प्रबंधन प्रतिष्ठान (आईएफक्यूएम) की एक संगोष्ठी में उद्योग जगत से युवाओं को कौशल प्रदान करने में सरकार के साथ साझेदारी करने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा कि उद्योग जगत को सिर्फ बजट से पहले ही नहीं, बल्कि पूरे साल सरकार के साथ लगातार संपर्क बनाए रखना चाहिए.
उन्होंने कहा कि विकसित भारत के लिए गुणवत्ता प्रबंधन के प्रति एक अनुभवी नजरिया अपनाना होगा, जिसमें विनिर्माण और सेवाओं के उन स्तरों और क्षेत्रों की पहचान की जाएगी जहां हस्तक्षेप की सबसे अधिक जरूरत है. टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन के यह पूछने पर कि उद्योग जगत को अब क्या करना चाहिए, सीतारमण ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सुधारों पर कभी नरमी नहीं बरती है और न ही उन्होंने उद्योग जगत की इच्छाओं को नजरअंदाज किया है. सरकार उद्योग जगत की अपेक्षाओं के अनुरूप काम कर रही है.
वित्त मंत्री ने आगे कहा कि सरकार ने व्यापार सुगमता, कर सुधार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को खोलने और उद्योग जगत के अनुकूल नीतियां बनाने का काम किया है. सीतारमण ने कहा, ”मुझे उम्मीद है कि उद्योग जगत को अब भारत में अधिक निवेश करने, क्षमता विस्तार करने और अधिक उत्पादन करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी. सरकार आगे और क्या करे, इस बारे में भी उद्योग को बताना चाहिए.” उद्योग जगत से निवेश करने के वित्त मंत्री के आह्वान पर प्रतिक्रिया देते हुए चंद्रशेखरन ने स्वीकार किया कि सरकार ने घरेलू और निर्यात बाजार, दोनों में अपार अवसर तैयार किए हैं.
उन्होंने कहा, ”मेरा दृढ. विश्वास है कि ज्यादा उद्यमी, अधिक संख्या में छोटी, मझोली और बड़ी कंपनियां ढेर सारा निवेश करेंगी. मुझे पूरा विश्वास है, क्योंकि निवेश के बिना हम इस अवसर का लाभ नहीं उठा पाएंगे.” सरकार निजी क्षेत्र के उद्योगों को क्षमता विस्तार में निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन निजी निवेश सरकारी पूंजीगत व्यय से पीछे बना हुआ है.
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अप्रैल में जारी एक सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 में निजी निवेश 26 प्रतिशत घटकर 4.89 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है. सीतारमण ने आगे कहा कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे महत्वपूर्ण योगदान एमएसएमई क्षेत्र का है, और सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक एमएसएमई समूहों के बीच सक्रिय रहे.


